Friday, September 3, 2010

कहीं नोरा पड्या - दौलतराम छाजेड

कहीं नोरा पड्या कहीं बाड़ा पड्या
कहीं खेत का खेत उजाड्या पड्या
कहीं खेजडा खोखां सै बोझ मरै
कहीं लूँग बिचारा का झाड्या पड्या
कहीं घोचाँ सूँ नीठ रसोई बनै
कहीं ढारा मैं लक्कड़ फाड्या पड्या
कहीं रंग सुरंगी हवेली घणी
कहीं बोदी मैं चीर दराड़ा पड्या
कहीं सूनी हवेली मैं सून घणी
कहीं घुबारयाँ मैं बीसाँ ही बाड्या  पड्या
कहीं खद्दर को मिलै ना चादरों
कहीं रेशम मलमल फाड्या पड्या
कहीं अन्न बिना नित मन दुखी
कहीं दाड़िम दाख सिंघाड़ा पड्या
कहीं ब्याज क़ि आय को पार नहीं
कहीं भाड़ेती का चढ्या भाड़ा पड्या
कहीं जेब मैं एक दुअन्नी नहीं
कहीं नोटां का ताड़ा का ताड़ा पड्या
कहीं भाटां का टाबर साफ़ घणा
कहीं सेडै सूँ नास लिवाड्या  पड्या
कहीं साँची भी रांड कहवे तो डरै
कहीं झूठा ही झोड़ झपाड़ा पड्या
कह दौलत कर्म कथा सगली
कहीं सून्धा पड्या ऊंधा पड्या   


          

1 comment:

  1. mane aapri wa aapni bhasa main aapri rachana padh ra bado majo aayo.

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