रामदेव जी पीर ओलिया , मुस्लिम धोकै न्यारा,
हिन्दू पूजे सकरबार सा , नरहड़ जाय परबारा |
ईद दिवाली परब मुबारक , ना रे किन्तु परन्तु ,
मंचित अठे रामलीला, मिल करे मुसलमां हिन्दू |
निरगुण निराकार परमेसर, ना अल्ला की जाति,
हिन्दू मुसलमां भाई भाई वाह भई शेखावाटी ||
मुरली मनोहर बासोतिया
रचित ' वाह भई शेखावाटी' पुस्तक से उद्धृत
Thursday, September 30, 2010
Thursday, September 23, 2010
भारत नै यूरोप बना दयांगा - पं नवल किशोर खेडवाल
हिन्द हिन्दी नै भूले तो हिन्दी और पढैलो कुण,
गीता कुरान पडी रवैली बी रो पाठ करैलो कुण ,
थोड़ी मोमीन मिटाग्या था थोड़ी अंग्रेज मिटाग्या ,
और थोड़ी सी और मिटा दयांगा,
मत घबराओ साथीड़ा, भारत नै यूरोप बना दयांगा,
दूध दही नै छा नै भूल्या, भूल्या इतिहास पुराणै नै,
बिस्कुट चाय डबल रोटी बस रहगी फैशन खाणै में ,
टाबर अंग्रेज बणाबा री सगलाँ रै मन में आ री है ,
छोरयाँ भी लारै क्यूँ रहसी बै भी बाल कटा री है
डब्बू गब्बू बंटी पप्पू यै नाम सुण्या म्हे कूताँ का
बड़े गरब सूँ आज कढाया म्हे ही म्हारै पूताँ का
म्हारै घर री इज्जत औरत ही अब कल्बा में नाच करावाँला
पतिव्रता और सती शब्द पर प्रतिबन्ध लगावाँला
के ई दिन रे खाता ही सीमा पर गोल्याँ खाई थी
हंस हंस के फांसी चढ़रया था बे मौत ऩे गले लगाई थी
यै घर रा दिवला घर बाले तो घर ऩे अब बचावैलों कुण
गीता कुरान पडी रहसी बी रो पाठ करैलो कुण
गीता कुरान पडी रवैली बी रो पाठ करैलो कुण ,
थोड़ी मोमीन मिटाग्या था थोड़ी अंग्रेज मिटाग्या ,
और थोड़ी सी और मिटा दयांगा,
मत घबराओ साथीड़ा, भारत नै यूरोप बना दयांगा,
दूध दही नै छा नै भूल्या, भूल्या इतिहास पुराणै नै,
बिस्कुट चाय डबल रोटी बस रहगी फैशन खाणै में ,
टाबर अंग्रेज बणाबा री सगलाँ रै मन में आ री है ,
छोरयाँ भी लारै क्यूँ रहसी बै भी बाल कटा री है
डब्बू गब्बू बंटी पप्पू यै नाम सुण्या म्हे कूताँ का
बड़े गरब सूँ आज कढाया म्हे ही म्हारै पूताँ का
म्हारै घर री इज्जत औरत ही अब कल्बा में नाच करावाँला
पतिव्रता और सती शब्द पर प्रतिबन्ध लगावाँला
के ई दिन रे खाता ही सीमा पर गोल्याँ खाई थी
हंस हंस के फांसी चढ़रया था बे मौत ऩे गले लगाई थी
यै घर रा दिवला घर बाले तो घर ऩे अब बचावैलों कुण
गीता कुरान पडी रहसी बी रो पाठ करैलो कुण
Thursday, September 16, 2010
मत पूछै के ठाठ भायला - महावीर जोशी
यह कविता झुंझुनू जिले के बसावता खुर्द गाँव के रहने वाले कवि श्री महावीर जी जोशी ने लिखी है | कविता में एक मित्र दूसरे मित्र को अपनी जवानी और वृद्धावस्था की तुलना करके अपनी हालत का वर्णन कर रहा है
मत पूछे के ठाठ भायला | पोळी में है खाट भायला ||
पनघट पायल बाज्या करती ,सुगनु चुड़लो हाथा मै |
रूप रंगा रा मेला भरता ,रस बरस्या करतो बातां मै |
हाँस हाँस कामन घणी पूछती , के के गुज़री राताँ मै |
घूंघट माई लजा बीनणी ,पल्लो देती दांता मै |
नीर बिहुणी हुई बावड़ी , सूना पणघट घाट भायला | पोळी मै है खाट भायला ||
छल छल जोबन छ्ळ्क्या करतो ,गोटे हाळी कांचली |
मांग हींगलू नथ रो मोती ,माथे रखडी सांकली |
जगमग जगमग दिवलो जुगतो ,पळका पडता गैणा मै |
घणी हेत सूं सेज सजाती ,काजल सारयां नैणा मै |
उन नैणा मै जाळा पड़गा ,देख्या करता बाट भायला | पोळी मै है खाट भायला||
अतर छिडकतो पान चबातो नैलै ऊपर दैलो |
दुनिया कैती कामणगारो ,अपने जुग को छैलो हो |
पण बैरी की डाढ रूपि ना, इतनों बळ हो लाठी मैं |
तन को बळ मन को जोश झळकणो ,मूंछा हाली आंटी मै |||
इब तो म्हारो राम रूखाळो , मिलगा दोनूं पाट भायला | पोळी मै है खाट भायला||
बिन दांता को हुयो जबाडो चश्मों चढ़ग्यो आख्याँ मै |
गोडा मांई पाणी पडगो जोर बच्यो नी हाथां मै |
हाड हाड मै पीड पळै है रोम रोम है अब खाई |
छाती कै मा कफ घरडावै खाल डील की लटक्याई ||
चिठियो म्हारो साथी बणगो ,डगमग हालै टाट भायला | पोळी मै है खाट भायला ||
Thursday, September 9, 2010
गोखे बैठी शाम
सेठ बस्या कलकत्ता बम्बई डिबरूगढ़ आसाम
चाकर ठीड़े बैठ्या बैठ्या काटी उमर तमाम
कुण सूँ मुजरा करै हवेल्याँ बरसां मिलै न राम
बाटडली जोवै आवण री गोखे बैठी शाम
- अज्ञात
Sunday, September 5, 2010
मायड़ भासा - ओम पुरोहित ' कागद'
राज बणाया राजव्यां,भाषा थरपी ज्यान ।
बिन भाषा रै भायला,क्यां रो राजस्थान ॥१॥
रोटी-बेटी आपणी,भाषा अर बोवार ।
राजस्थानी है भाई,आडो क्यूं दरबार ॥२॥
राजस्थानी रै साथ में,जनम मरण रो सीर ।
बिन भाषा रै भायला,कुत्तिया खावै खीर ।।३॥
पंचायत तो मोकळी,पंच बैठिया मून ।
बिन भाषा रै भायला,च्यारूं कूंटां सून ॥४॥
भलो बणायो बाप जी,गूंगो राजस्थान ।
बिन भाषा रै प्रांत तो,बिन देवळ रो थान॥५॥
आजादी रै बाद सूं,मून है राजस्थान ।
अपरोगी भाषा अठै,कूकर खुलै जुबान ॥६॥
राजस्थान सिरमोड है,मायड भाषा मान ।
दोनां माथै गरब है,दोनां साथै शान ॥७॥
बाजर पाकै खेत में,भाषा पाकै हेत ।
दोनां रै छूट्यां पछै,हाथां आवै रेत ॥८॥
निज भाषा सूं हेत नीं,पर भाषा सूं हेत ।
जग में हांसी होयसी,सिर में पड्सी रेत ॥९॥
निज री भाषा होंवतां,पर भाषा सूं प्रीत ।
ऐडै कुळघातियां रो ,जग में कुण सो मीत ॥१०॥
घर दफ़्तर अर बारनै,निज भाषा ई बोल ।
मायड भाषा रै बिना,डांगर जितनो मोल ॥११॥
मायड भाषा नीं तजै,डांगर-पंछी-कीट ।
माणस भाषा क्यूं तजै, इतरा क्यूं है ढीट ॥१२॥
मायड भाषा रै बिना,देस हुवै परदेस ।
आप तो अबोला फ़िरै,दूजा खोसै केस ॥१३॥
भाषा निज री बोलियो,पर भाषा नै छोड ।
पर भाषा बोलै जका,बै पाखंडी मोड ॥१४॥
मायड भाषा भली घणी, ज्यूं व्है मीठी खांड ।
पर भाषा नै बोलता,जाबक दीखै भांड ॥१५॥
जिण धरती पर बास है,भाषा उण री बोल ।
भाषा साथ मान है , भाषा लारै मोल ॥१६॥
मायड भाषा बेलियो,निज रो है सनमान ।
पर भाषा नै बोल कर,क्यूं गमाओ शान ॥१७॥
राजस्थानी भाषा नै,जितरो मिलसी मान ।
आन-बान अर शान सूं,निखरसी राजस्थान ॥१८॥
धन कमायां नीं मिलै,बो सांचो सनमान ।
मायड भाषा रै बिना,लूंठा खोसै कान ॥१९॥
म्हे तो भाया मांगस्यां,सणै मान सनमान ।
राजस्थानी भाषा में,हसतो-बसतो रजथान ॥२०॥
निज भाषा नै छोड कर,पर भाषा अपणाय ।
ऐडै पूतां नै देख ,मायड भौम लजाय ॥२१॥
भाषा आपणी शान है,भाषा ही है मान ।
भाषा रै ई कारणै,बोलां राजस्थान ॥२२॥
मायड भाषा मोवणी,ज्यूं मोत्यां रो हार ।
बिन भाषा रै भायला,सूनो लागै थार ॥२३॥
जिण धरती पर जळमियो,भाषा उण री बोल ।
मायड भाषा छोड कर, मती गमाओ डोळ ॥२४॥
हिन्दी म्हारो काळजियो,राजस्थानी स ज्यान ।
आं दोन्यूं भाषा बिना,रै’सी कठै पिछाण ॥२५॥
राजस्थानी भाषा है,राजस्थान रै साथ ।
पेट आपणा नीं पळै,पर भाषा रै हाथ ॥२६॥
===ओम पुरोहित’कागद’
साभार from www.omkagad.blogspot.com
बिन भाषा रै भायला,क्यां रो राजस्थान ॥१॥
रोटी-बेटी आपणी,भाषा अर बोवार ।
राजस्थानी है भाई,आडो क्यूं दरबार ॥२॥
राजस्थानी रै साथ में,जनम मरण रो सीर ।
बिन भाषा रै भायला,कुत्तिया खावै खीर ।।३॥
पंचायत तो मोकळी,पंच बैठिया मून ।
बिन भाषा रै भायला,च्यारूं कूंटां सून ॥४॥
भलो बणायो बाप जी,गूंगो राजस्थान ।
बिन भाषा रै प्रांत तो,बिन देवळ रो थान॥५॥
आजादी रै बाद सूं,मून है राजस्थान ।
अपरोगी भाषा अठै,कूकर खुलै जुबान ॥६॥
राजस्थान सिरमोड है,मायड भाषा मान ।
दोनां माथै गरब है,दोनां साथै शान ॥७॥
बाजर पाकै खेत में,भाषा पाकै हेत ।
दोनां रै छूट्यां पछै,हाथां आवै रेत ॥८॥
निज भाषा सूं हेत नीं,पर भाषा सूं हेत ।
जग में हांसी होयसी,सिर में पड्सी रेत ॥९॥
निज री भाषा होंवतां,पर भाषा सूं प्रीत ।
ऐडै कुळघातियां रो ,जग में कुण सो मीत ॥१०॥
घर दफ़्तर अर बारनै,निज भाषा ई बोल ।
मायड भाषा रै बिना,डांगर जितनो मोल ॥११॥
मायड भाषा नीं तजै,डांगर-पंछी-कीट ।
माणस भाषा क्यूं तजै, इतरा क्यूं है ढीट ॥१२॥
मायड भाषा रै बिना,देस हुवै परदेस ।
आप तो अबोला फ़िरै,दूजा खोसै केस ॥१३॥
भाषा निज री बोलियो,पर भाषा नै छोड ।
पर भाषा बोलै जका,बै पाखंडी मोड ॥१४॥
मायड भाषा भली घणी, ज्यूं व्है मीठी खांड ।
पर भाषा नै बोलता,जाबक दीखै भांड ॥१५॥
जिण धरती पर बास है,भाषा उण री बोल ।
भाषा साथ मान है , भाषा लारै मोल ॥१६॥
मायड भाषा बेलियो,निज रो है सनमान ।
पर भाषा नै बोल कर,क्यूं गमाओ शान ॥१७॥
राजस्थानी भाषा नै,जितरो मिलसी मान ।
आन-बान अर शान सूं,निखरसी राजस्थान ॥१८॥
धन कमायां नीं मिलै,बो सांचो सनमान ।
मायड भाषा रै बिना,लूंठा खोसै कान ॥१९॥
म्हे तो भाया मांगस्यां,सणै मान सनमान ।
राजस्थानी भाषा में,हसतो-बसतो रजथान ॥२०॥
निज भाषा नै छोड कर,पर भाषा अपणाय ।
ऐडै पूतां नै देख ,मायड भौम लजाय ॥२१॥
भाषा आपणी शान है,भाषा ही है मान ।
भाषा रै ई कारणै,बोलां राजस्थान ॥२२॥
मायड भाषा मोवणी,ज्यूं मोत्यां रो हार ।
बिन भाषा रै भायला,सूनो लागै थार ॥२३॥
जिण धरती पर जळमियो,भाषा उण री बोल ।
मायड भाषा छोड कर, मती गमाओ डोळ ॥२४॥
हिन्दी म्हारो काळजियो,राजस्थानी स ज्यान ।
आं दोन्यूं भाषा बिना,रै’सी कठै पिछाण ॥२५॥
राजस्थानी भाषा है,राजस्थान रै साथ ।
पेट आपणा नीं पळै,पर भाषा रै हाथ ॥२६॥
===ओम पुरोहित’कागद’
साभार from www.omkagad.blogspot.com
Friday, September 3, 2010
कहीं नोरा पड्या - दौलतराम छाजेड
कहीं नोरा पड्या कहीं बाड़ा पड्या
कहीं खेत का खेत उजाड्या पड्या
कहीं खेजडा खोखां सै बोझ मरै
कहीं लूँग बिचारा का झाड्या पड्या
कहीं घोचाँ सूँ नीठ रसोई बनै
कहीं ढारा मैं लक्कड़ फाड्या पड्या
कहीं रंग सुरंगी हवेली घणी
कहीं बोदी मैं चीर दराड़ा पड्या
कहीं सूनी हवेली मैं सून घणी
कहीं घुबारयाँ मैं बीसाँ ही बाड्या पड्या
कहीं खद्दर को मिलै ना चादरों
कहीं रेशम मलमल फाड्या पड्या
कहीं अन्न बिना नित मन दुखी
कहीं दाड़िम दाख सिंघाड़ा पड्या
कहीं ब्याज क़ि आय को पार नहीं
कहीं भाड़ेती का चढ्या भाड़ा पड्या
कहीं जेब मैं एक दुअन्नी नहीं
कहीं नोटां का ताड़ा का ताड़ा पड्या
कहीं भाटां का टाबर साफ़ घणा
कहीं सेडै सूँ नास लिवाड्या पड्या
कहीं साँची भी रांड कहवे तो डरै
कहीं झूठा ही झोड़ झपाड़ा पड्या
कह दौलत कर्म कथा सगली
कहीं सून्धा पड्या ऊंधा पड्या
कहीं खेत का खेत उजाड्या पड्या
कहीं खेजडा खोखां सै बोझ मरै
कहीं लूँग बिचारा का झाड्या पड्या
कहीं घोचाँ सूँ नीठ रसोई बनै
कहीं ढारा मैं लक्कड़ फाड्या पड्या
कहीं रंग सुरंगी हवेली घणी
कहीं बोदी मैं चीर दराड़ा पड्या
कहीं सूनी हवेली मैं सून घणी
कहीं घुबारयाँ मैं बीसाँ ही बाड्या पड्या
कहीं खद्दर को मिलै ना चादरों
कहीं रेशम मलमल फाड्या पड्या
कहीं अन्न बिना नित मन दुखी
कहीं दाड़िम दाख सिंघाड़ा पड्या
कहीं ब्याज क़ि आय को पार नहीं
कहीं भाड़ेती का चढ्या भाड़ा पड्या
कहीं जेब मैं एक दुअन्नी नहीं
कहीं नोटां का ताड़ा का ताड़ा पड्या
कहीं भाटां का टाबर साफ़ घणा
कहीं सेडै सूँ नास लिवाड्या पड्या
कहीं साँची भी रांड कहवे तो डरै
कहीं झूठा ही झोड़ झपाड़ा पड्या
कह दौलत कर्म कथा सगली
कहीं सून्धा पड्या ऊंधा पड्या
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