Friday, December 10, 2010

शेखचिल्ली - जगदीश 'पेंटर'

मुक्की दे' र पापड फोडूं, लात की दे'र पतासो रे ,
मींगणी नै हदर उठा ल्यूँ, देखो यार तमासो रे |
 पाटा पर सूँ कूद ज्याऊं, नीम्बू निचोड़ दयूं  झटका सूँ,
फूसका नै फर उड़ा दयूं मैं नाड का लटका सूँ |
फूंक देकर चिमनी बुता दयूं तकियों उठा ल्यूँ हाथां सूँ ,
काम धंधो होवै कोनी घर चालरयो बाताँ सूँ  |
आधी रोटी सूँ पेट भरल्यां दो घूँट चाय की ,
दूध दही भावे  कोन्या उबाक आवै छाय की |
कीड़ी दाब कांख मै भागूँ कोई पकड़ ना पावे,
थर थर धूजे काया सारी म्हासूँ कुण टकरावे |
चालीस सेर को छैलो मै तो तुल्यां ताखड़ी टूटे रे,
पग पकड़'र झट मनाल्यूं जे घर हाली रूठे रे |    
होली दीवाली न्हावाँ धोवाँ करके तातो पाणी जी ,
खुडका सूँ डर के भागां या ही म्हारी पिछाणी जी |
माखी मार दयूं चूसो पकड़ क्यूं पण थाने भी तो क्यूं करणों है ,
थे भी मेरी तरियां हिम्मत करल्यो मरने सूँ के डरणो है |
कबड्डी का कोई पाला मांडे तो म्हारी कच्ची डाँई जी ,
थाला बैठ्या क्यूं तो कराँ जणा थाने या बात बतायी जी |   
                                                                                        - जगदीश 'पेंटर'