Friday, November 25, 2011

कांई पूछैलो बाबा - अज्ञात

आटै-दाळ रो भाव जाण लियो, और कांई पूछैलो बाबा ।
मंहगाई री बातां करां तो, काळजियो धूजैलो बाबा ॥

मोडा-नेता मंत्रबाज सहै, परजा ऊपर फूंक मार रया ।
तूं भी कोई अफंड रचालै, सगळो जग पूजैला बाबा ॥

संसद ऊपर गोळी चालै, बाथरूम में लुक ज्यावैला ।
हत्यारा हलुओ खावैला, तूं बिरथा कूकैलो बाबा ॥

लाधड़ियै में रहणो है तो, हां जी, हां जी कहता जावो ।
बात सांचली कह गेरी तो, तेरो गळो टूंपलो बाबा ॥

जे कोई मिलग्यो सांड आबखो, अहड़ी लात लगा देसी ।
धरम-करम धूळ में रळसी, जमलोकां पूगैलो बाबा ॥
                                              - अज्ञात 

Wednesday, April 20, 2011

हेली - ताऊ शेखावाटी

हेली जलम्यो है बो मरसी, ईं में बोल राम के करसी।
मंदिर धोकर चाए मसजिद, गुरुद्वाराँ अरदास कर्याँ नित।
काम न आणी कोई भी बिध, तूँ जितणी भी करसी।
हेली! जलम्यो है वो मरसी, जग में जीव जळम निज पाताँ।
लेखो लेती हाथूँ-हाथाँ, साँस जिता घालै बेमाता।
उतणा लेणा पड़सी, हेली! जळम्यो है बो मरसी।
क्यूँ होरी है करड़ी-काठी, काळचक्र गति जाय न डाटी।
सब नैं हीं मिलणो है माटी, घींस्यो हो या घड़सी।
हेली! जळम्यो है बो मरसी, होणी कदै टळै नीं टाळी।
रीत सदाँ स्यूँ आई चाली, पल्लव नुवाँ उगंताँ डाळी।
पात पुराणाँ झड़सी, हेली! जळम्यो है बो मरसी।
                                  - ताऊ शेखावाटी 

Saturday, April 2, 2011

एक छोरी काळती - भागीरथ सिंह भाग्य

एक छोरी काळती हमेशा जीव बाळती,
सींवा जोड़ खेत म्हारो चाव सूँ रूखाळती |(एक छोरी...

ऊंचा ऊंचा टीबडा मै रूंखड़ा रो खेत हो ,
खेत रुजगार म्हारो खेत सूँ ही हेत हो |
हेत हरियाल्या नै तावडा सूँ टाळती || (एक छोरी ...

बेल बीरो शीश फूल फूल बीरी राखड़ी,
एक बार आखडी तो बार बार आखडी |
लाज सूँ झुकी झुकी सी लूगड़ी संभाळती|| (एक छोरी ...

भोत राजी रेवती तो झूपडी बुहारती ,
रूसती तो गाव्ड्या नै बाछड़ा नै मारती |
हेत जै जणावती तो टींडसी उछाळती || (एक छोरी ...

गाँव रै गुवाड़ बीच देखती ना बोलती ,
हेत सूँ बुलावता तो आँख भी ना खोलती |
खेत मै ना जावता तो गाळीयाँ निकालती ||(एक छोरी ....
                                                                    - भागीरथ सिंह भाग्य 

Monday, March 21, 2011

मत दीजे परदेस - भागीरथ सिंह भाग्य

लोग न जाणै कायदा ना जाणै अपणेस । राम भलाईँ मौत दे मत दीजै परदेस  ||
ना सुख चाहु सुरग रो नरक आवसी दाय। म्हारी माटी गांव री गळियाँ जै रळ जाय॥
जोगी आयो गांव सूँ ल्यायो ओ समचार । काळ पड्यो नी धुक सक्यो दिवलाँ रो त्युहार् ॥
इकतारो अर गीतडा जोगी री जागीर । घिरता फिरतापावणा घर घर थारो सीर ॥
आ जोगी बंतल कराँ पूछा मन री बात । उगता हुसी गांव मँ अब भी दिन अर रात ॥
जमती हुसी मैफलाँ मद छकिया भोपाळ । देता हुसी आपजी अब पी कै गाळ ॥
दारू पीवै आपजी टूट्यो पड्यो गिलास । पी कै बोलै फारसी पड्या न एक किलास ॥
साँझ ढल्याँ नित गाँव री भर ज्याती चौपाळ । चिलमा धूँवा चालती बाताँ आळ पताळ ॥
पाती लेज्या डाकिया जा मरवण रै देश । प्रीत बिना जिणो किसो कैजे ओ सन्देश ॥
काळी कोसा आंतरै परदेशी री प्रीत । पूग सकै तो पूग तूँ नेह बिजोगी गीत ॥
मरवण गावै पीपली तेजो गावै लोग । मै बैठयो परदेश मँ भोगू रोग बिजोग ।।
सावण आयो सायनी खेता नाचै मोर । म्हारै नैणा रात दिन गळ गळ जावै मोर ॥
                                                                                          - भागीरथ सिंह भाग्य 

Friday, March 4, 2011

खेतां री प्रीत

जद सूँ पाकी बाजरी काचर मोठ समेत , दिन भर नापै चाव सूँ पटवारी जी खेत |
होगी सोळा साल री बेटी करै बणाव , कद निपजैली टीबडी कद मांडूला ब्याव |
टाबर टींगर मोकळाँ करजै री भरमार , राम रूखाळी राखजै थाँ सरणै घरबार |
उगतो पिणघट ऊपराँ सुणतो मिठी बात , गळी गुवाडी घूमतो चान्दो सारी रात |
सांझ ढळ्याँ नित जांवता देखै सारो गांव, पिरमा थारी लाडली पटवारी रै ठांव |
छैल सहर सूँ बावडै खरचै धोबा धोब, पडै गांव मै रात दिन पटवारी सा रोब |
प्रीत आपरी अचपळी घणी करै कुचमाद, सुपना मै सामी रवै जाग्या आवै याद |
राग रंग नी आवडै कींकर उपजै तान, घर मै कोनी बाजरी अर टूट्योडी छान |
बिन हरियाळी रूंखडा घरघूल्या सा ठांव, ’राही’ दीखै दूर सूँ थारो आधो गांव |
गाय चराती छोरडयाँ जोबन सूँ अणजाण, देख ओपरा जा लूकै कर जांटी री आण
के तडपासी बादळी के कोयल री कूक , पैली ही सूँ काळजो हुयो पड्यो दो टूक |
ना आंचळ ना घूंघटो ना हीवडै मै लाज , घिरसत पाळै गोरडी रोटी पोवै राज |
धान महाजन रै घराँ ढोर बिक्या बे दाम , करज पुराणो बाप रो कीयाँ चुकै राम | 
ठाला बिन रूजगार कै ताना देता लोग,भरी न हाली गांव सूँ मनस्या बाळण जोग
                                                                           
                                                                            - लेखक अज्ञात 
                                                                           संकलनकर्ता जाबिर खान  

Saturday, January 22, 2011

क़सर नहीं है स्याणै में - भागीरथ सिंह भाग्य

सुख को कनको उड़तो कीया काण राख दी काणै में |
खोयो ऊँट घडै मै ढूडै कसर नहीं है स्याणै में ||
भूल चूक सब लेणी देणी ठग विद्या व्यापार करयो |
एक काठ की हांडी पर ही दळियो सौ बर त्यार करयो ||
बस पङता तो एक न छोड्यो च्यारू मेर सिवाणै मै |
खोयो ऊँट घडै में ढूँढे कसर नहीं है स्याणै मै


डाकण बेटा दे या ले , आ भी बात बताणी के |
तेल बड़ा सू पैली पीज्या बां की कथा कहाणी के ||
भोळा पंडित के ले ले भागोत बांच कर थाणै मे |
खोयो ऊंट घडै मे ढूंढै क़सर नहीं है स्याणै में |

जका चालता बेटा बांटै ,बै नितकी प्रसिद्ध रैया |
बिगड़ी तो बस चेली बिगड़ी संत सिद्ध का सिद्ध रैया ||
नै भी सिद्ध रैया तो कुण सो कटगो नाक ठिकाणै मे ||
खोयो ऊंट घडै मे ढूंढै क़सर नहीं है स्याणै में |

बडै चाव सूँ नाम निकाल्यो , होगो घर हाळा भागी |
लगा नाम कै बट्टो खुद कै लखणा बणरयो निर भागी |
तूं उखडन सूँ नहीं आपक्यो थकग्यो गाँव जमाणै में |
खोयो ऊंट घडै मे ढूंढै क़सर नहीं है स्याणै में |
                                                                                - भागीरथ सिंह भाग्य 

Saturday, January 1, 2011

पातळ और पीथल - कन्हैया लाल सेठिया

हरे घास री रोटी ही जद बन बिलावड़ो ले भाग्यो।
नान्हो सो अमर्यो चीख पड्यो राणा रो सोयो दुख जाग्यो।
हूं लड्यो घणो हूं सह्यो घणो मेवाड़ी मान बचावण नै,
हूं पाछ नहीं राखी रण में बैर्यां री खात खिडावण में,
जद याद करूँ हळदीघाटी नैणां में रगत उतर आवै,
सुख दुख रो साथी चेतकड़ो सूती सी हूक जगा ज्यावै,
पण आज बिलखतो देखूं हूँ जद राज कंवर नै रोटी नै,
तो क्षात्र-धरम नै भूलूं हूँ भूलूं हिंदवाणी चोटी नै
मैं’लां में छप्पन भोग जका मनवार बिनां करता कोनी,
सोनै री थाल्यां नीलम रै बाजोट बिनां धरता कोनी,
ए  हाय जका करता पगल्या फूलां री कंवळी सेजां पर,
बै आज रुळै भूखा तिसिया हिंदवाणै सूरज रा टाबर,
आ सोच हुई दो टूक तड़क राणा री भीम बजर छाती,
आंख्यां में आंसू भर बोल्या मैं लिखस्यूं अकबर नै पाती,
पण लिखूं कियां जद देखै है आडावळ ऊंचो हियो लियां,
चितौड़ खड्यो है मगरां में विकराळ भूत सी लियां छियां,
मैं झुकूं कियां ? है आण मनैं कुळ रा केसरिया बानां री,
मैं बुझूं कियां ? हूं सेस लपट आजादी रै परवानां री,
पण फेर अमर री सुण बुसक्यां राणा रो हिवड़ो भर आयो,
मैं मानूं हूँ दिल्लीस तनैं समराट् सनेशो कैवायो।
राणा रो कागद बांच हुयो अकबर रो’ सपनूं सो सांचो,
पण नैण कर्यो बिसवास नहीं जद बांच नै फिर बांच्यो,
कै आज हिंमाळो पिघळ बह्यो कै आज हुयो सूरज सीतळ
कै आज सेस रो सिर डोल्यो आ सोच हुयो समराट् विकळ,
बस दूत इसारो पा भाज्यो पीथळ नै तुरत बुलावण नै,
किरणां रो पीथळ आ पूग्यो ओ सांचो भरम मिटावण नै,
बीं वीर बांकुड़ै पीथळ नै रजपूती गौरव भारी हो,
बो क्षात्र धरम रो नेमी हो राणा रो प्रेम पुजारी हो,
बैर्यां रै मन रो कांटो हो बीकाणूँ पूत खरारो हो,
राठौड़ रणां में रातो हो बस सागी तेज दुधारो हो,
आ बात पातस्या जाणै हो घावां पर लूण लगावण नै,
पीथळ नै तुरत बुलायो हो राणा री हार बंचावण नै,
म्है बाँध लियो है पीथळ सुण पिंजरै में जंगळी शेर पकड़,
ओ देख हाथ रो कागद है तूं देखां फिरसी कियां अकड़ ?
मर डूब चळू भर पाणी में बस झूठा गाल बजावै हो,
पण टूट गयो बीं राणा रो तूं भाट बण्यो बिड़दावै हो,
मैं आज पातस्या धरती रो मेवाड़ी पाग पगां में है,
अब बता मनै किण रजवट रै रजपती खून रगां में है ?
जंद पीथळ कागद ले देखी राणा री सागी सैनाणी,
नीचै स्यूं धरती खसक गई आंख्यां में आयो भर पाणी,
पण फेर कही ततकाळ संभळ आ बात सफा ही झूठी है,
राणा री पाघ सदा ऊँची राणा री आण अटूटी है।
ल्यो हुकम हुवै तो लिख पूछूं राणा नै कागद रै खातर,
लै पूछ भलांई पीथळ तूं आ बात सही बोल्यो अकबर,
म्हे आज सुणी है नाहरियो स्याळां रै सागै सोवै लो,
म्हे आज सुणी है सूरजड़ो बादळ री ओटां खोवैलो;
म्हे आज सुणी है चातगड़ो धरती रो पाणी पीवै लो,
म्हे आज सुणी है हाथीड़ो कूकर री जूणां जीवै लो
म्हे आज सुणी है थकां खसम अब रांड हुवैली रजपूती,
म्हे आज सुणी है म्यानां में तरवार रवैली अब सूती,
तो म्हांरो हिवड़ो कांपै है मूंछ्यां री मोड़ मरोड़ गई,
पीथळ नै राणा लिख भेज्यो आ बात कठै तक गिणां सही ?
पीथळ रा आखर पढ़तां ही राणा री आँख्यां लाल हुई,
धिक्कार मनै हूँ कायर हूँ नाहर री एक दकाल हुई,
हूँ भूख मरूं हूँ प्यास मरूं मेवाड़ धरा आजाद रवै हूँ
घोर उजाड़ां में भटकूं पण मन में मां री याद रवै,
हूँ रजपूतण रो जायो हूं रजपूती करज चुकाऊंला,
ओ सीस पड़ै पण पाघ नही दिल्ली रो मान झुकाऊंला,
पीथळ के खिमता बादल री जो रोकै सूर उगाळी नै,
सिंघां री हाथळ सह लेवै बा कूख मिली कद स्याळी नै?
धरती रो पाणी पिवै इसी चातग री चूंच बणी कोनी,
कूकर री जूणां जिवै इसी हाथी री बात सुणी कोनी,
आं हाथां में तलवार थकां कुण रांड़ कवै है रजपूती ?
म्यानां रै बदळै बैर्यां री छात्याँ में रैवैली सूती,
मेवाड़ धधकतो अंगारो आंध्यां में चमचम चमकै लो,
कड़खै री उठती तानां पर पग पग पर खांडो खड़कैलो,
राखो थे मूंछ्याँ ऐंठ्योड़ी लोही री नदी बहा द्यूंला,
हूँ अथक लडूंला अकबर स्यूँ उजड्यो मेवाड़ बसा द्यूंला,
जद राणा रो संदेश गयो पीथळ री छाती दूणी ही,
हिंदवाणों सूरज चमकै हो अकबर री दुनियां सूनी ही। 
                                                                       -  कन्हैया लाल सेठिया