यह कविता झुंझुनू जिले के बसावता खुर्द गाँव के रहने वाले कवि श्री महावीर जी जोशी ने लिखी है | कविता में एक मित्र दूसरे मित्र को अपनी जवानी और वृद्धावस्था की तुलना करके अपनी हालत का वर्णन कर रहा है
मत पूछे के ठाठ भायला | पोळी में है खाट भायला ||
पनघट पायल बाज्या करती ,सुगनु चुड़लो हाथा मै |
रूप रंगा रा मेला भरता ,रस बरस्या करतो बातां मै |
हाँस हाँस कामन घणी पूछती , के के गुज़री राताँ मै |
घूंघट माई लजा बीनणी ,पल्लो देती दांता मै |
नीर बिहुणी हुई बावड़ी , सूना पणघट घाट भायला | पोळी मै है खाट भायला ||
छल छल जोबन छ्ळ्क्या करतो ,गोटे हाळी कांचली |
मांग हींगलू नथ रो मोती ,माथे रखडी सांकली |
जगमग जगमग दिवलो जुगतो ,पळका पडता गैणा मै |
घणी हेत सूं सेज सजाती ,काजल सारयां नैणा मै |
उन नैणा मै जाळा पड़गा ,देख्या करता बाट भायला | पोळी मै है खाट भायला||
अतर छिडकतो पान चबातो नैलै ऊपर दैलो |
दुनिया कैती कामणगारो ,अपने जुग को छैलो हो |
पण बैरी की डाढ रूपि ना, इतनों बळ हो लाठी मैं |
तन को बळ मन को जोश झळकणो ,मूंछा हाली आंटी मै |||
इब तो म्हारो राम रूखाळो , मिलगा दोनूं पाट भायला | पोळी मै है खाट भायला||
बिन दांता को हुयो जबाडो चश्मों चढ़ग्यो आख्याँ मै |
गोडा मांई पाणी पडगो जोर बच्यो नी हाथां मै |
हाड हाड मै पीड पळै है रोम रोम है अब खाई |
छाती कै मा कफ घरडावै खाल डील की लटक्याई ||
चिठियो म्हारो साथी बणगो ,डगमग हालै टाट भायला | पोळी मै है खाट भायला ||
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