Thursday, September 16, 2010

मत पूछै के ठाठ भायला - महावीर जोशी


यह कविता झुंझुनू जिले के बसावता खुर्द गाँव के रहने वाले कवि श्री महावीर जी जोशी ने लिखी है |  कविता में एक मित्र दूसरे मित्र को अपनी जवानी और वृद्धावस्था की तुलना करके अपनी हालत का वर्णन कर रहा है 


मत पूछे के ठाठ भायला | पोळी में है  खाट भायला || 
पनघट पायल बाज्या करती ,सुगनु चुड़लो हाथा मै | 
रूप रंगा रा मेला भरता ,रस बरस्या करतो बातां मै | 
हाँस हाँस कामन घणी पूछती , के के गुज़री राताँ  मै | 
घूंघट माई लजा बीनणी ,पल्लो देती दांता मै | 
नीर बिहुणी हुई बावड़ी , सूना पणघट घाट भायला | पोळी मै है खाट भायला ||

छल छल जोबन छ्ळ्क्या करतो ,गोटे हाळी कांचली | 
मांग हींगलू नथ रो मोती ,माथे रखडी सांकली | 
जगमग जगमग दिवलो जुगतो ,पळका पडता गैणा मै | 
घणी हेत सूं सेज सजाती ,काजल सारयां नैणा मै | 
उन नैणा मै जाळा पड़गा ,देख्या करता बाट भायला | पोळी मै है खाट भायला||

अतर छिडकतो पान चबातो नैलै ऊपर दैलो | 
दुनिया कैती कामणगारो ,अपने जुग को छैलो हो | 
पण बैरी की डाढ रूपि ना, इतनों बळ हो लाठी मैं | 
तन को बळ मन को जोश झळकणो ,मूंछा हाली आंटी मै ||| 
इब तो म्हारो राम रूखाळो , मिलगा दोनूं पाट भायला | पोळी मै है खाट भायला||

बिन दांता को हुयो जबाडो चश्मों चढ़ग्यो  आख्याँ मै | 
गोडा मांई पाणी पडगो जोर बच्यो नी हाथां मै | 
हाड हाड मै पीड पळै है रोम रोम है अब खाई | 
छाती कै मा कफ घरडावै खाल डील की लटक्याई || 
चिठियो  म्हारो साथी बणगो ,डगमग हालै टाट भायला | पोळी मै है खाट भायला ||

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