देव दाता रो धाम निरालो, थे फतेहपुर आज्यो जी ,
घणी थारी मनवार करांला, सगला ऩे सागे ल्याज्यो जी ||
सेठ, सती और सूरमा, संताँ को है बास अठे ,
छ ऋतु रो आणो जाणो, चन्दन जिस्यो घास अठे,
प्रेम प्रीत री बाताँ करस्यां, मौको मत बिसराज्यो जी,
घणी थारी मनवार करांला, सगला ऩे सागे ल्याज्यो जी ||
बीड़, बावड़ी, जोहड़ न्यारा, देख्याँ मन हरसावे है,
मोर, पपीहा, कोयल बोले , रोम रोम मुसकावे है,
सगला आवो देखण ऩे, ई माटी रो करज चुकाज्यो जी,
घणी थारी मनवार कराँला , सगला ऩे सागे ल्याज्यो जी ||
केर साँगरा की तरकारी, रोटी मोठ बाजरा की बणावाँगा,
देसी घी को दाल चूरमो, थाने घाल जिमावाँगा ,
दूध दही रा ठाठ मोकला, घने चाव सूँ खाज्यो जी,
घणी थारी मनवार करांला, सगला ऩे सागे ल्याज्यो जी ||
ढारागढ़ सा हेली नोरा महलाँ बँगला ऩे मात करे,
कूँट कूँट पर मंदिर देवरा आकाशाँ सूँ बात करे,
संदेसो पढ़कर आया रीज्यो, म्हारो मान बढाज्यो जी,
घणी थारी मनवार करांला, सगला ऩे सागे ल्याज्यो जी ||
- जगदीश 'पेंटर'
Tuesday, October 26, 2010
Sunday, October 10, 2010
बतलावण दादा पोते री - बाबूलाल भोजक
दादों - तू के करसी के नहीं करसी
पोतो - थे के करता के नहीं करता
दादों - गाबाँ में चाय पिया पहली पग धरती तले धरे कोनी
छापे में मूंड दियो राखे घर को धंधो सलटे कोनी
आंख्यां पर राखे ढोबसिया मूंडे पर मूंछ क़तर राखी
बाप जीवता बाळ दिया भदर में के कसर राखी
तू के करसी के नहीं करसी
पोतो - थे के करता के नहीं करता
कुर्तो सुथणीयो कडपदार हटड़ी पोथ्याँ सूँ भर राखी
दिखे ज्यूं सुदो सांसर सो काया तिरबंकी कर राखी
बे अंग्रेजां का राज गया बे रीत रिवाज बले कोनी
तेरो अण जुगतो हुनियारो घर काँ में कठे रले कोनी
दादों - तू के करसी के नहीं करसी
पोतो - थे के करता के नहीं करता
दादों - ताम्बे के मोटे ढीगे ऩे हांडी में ल्हको ल्हको धरता
गुड की गुडियानी लपसी सूँ म्हे सजन गोंठ सलटा देता
सिणीया सा बढया झड़ूला पर बरसां सूँ राछ फिरा देता
पचीस बरस का डांगर ऩे दे चिटकी च्यार भुला देता
धोती मण मेल भरी रहती बंड़ी चिटे स्यूं गळ ज्याती
छाछ मेट के धोवण स्यूं धोता तो जूवां झड ज्याती
तू के करसी के नहीं करसी
- बाबूलाल भोजक
राजस्थानी फिल्म कलाकार
फ़तेहपुर शेखावाटी
पोतो - थे के करता के नहीं करता
दादों - गाबाँ में चाय पिया पहली पग धरती तले धरे कोनी
छापे में मूंड दियो राखे घर को धंधो सलटे कोनी
आंख्यां पर राखे ढोबसिया मूंडे पर मूंछ क़तर राखी
बाप जीवता बाळ दिया भदर में के कसर राखी
तू के करसी के नहीं करसी
पोतो - थे के करता के नहीं करता
कुर्तो सुथणीयो कडपदार हटड़ी पोथ्याँ सूँ भर राखी
दिखे ज्यूं सुदो सांसर सो काया तिरबंकी कर राखी
बे अंग्रेजां का राज गया बे रीत रिवाज बले कोनी
तेरो अण जुगतो हुनियारो घर काँ में कठे रले कोनी
दादों - तू के करसी के नहीं करसी
पोतो - थे के करता के नहीं करता
दादों - ताम्बे के मोटे ढीगे ऩे हांडी में ल्हको ल्हको धरता
गुड की गुडियानी लपसी सूँ म्हे सजन गोंठ सलटा देता
सिणीया सा बढया झड़ूला पर बरसां सूँ राछ फिरा देता
पचीस बरस का डांगर ऩे दे चिटकी च्यार भुला देता
धोती मण मेल भरी रहती बंड़ी चिटे स्यूं गळ ज्याती
छाछ मेट के धोवण स्यूं धोता तो जूवां झड ज्याती
तू के करसी के नहीं करसी
- बाबूलाल भोजक
राजस्थानी फिल्म कलाकार
फ़तेहपुर शेखावाटी
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