Wednesday, May 23, 2012

किण नै बोलाँ बावला - शिव मृदुल

रूँख लगाया राख्या कोनी मीठा फल भी चाख्या कोनी ,
स्वारथ  री ले हाथ कुल्हाड़ी काटन हुया उतावला ,
बोलो किण  रा  काम सरावाँ किण  नै  बोलाँ बावला ।
   
ज्यूँ ज्यूँ रूँख कट्या मंगरा सू मिनखपणै  री जड़ कटगी ,
पैला मन में बनी दीवाराँ धरती टुकडाँ  मैं बँटगी ,
हेत रेत  रै पैंदे दब्ग्यो खेत बदल्ग्या बस्ती में ,
वन रे थोर मिला री चिमण्या धुओं उगल री मस्ती में,
कट्या  नीम बड पीपल चन्दन , केर,  टीमरू, आँवला ,
बोलो किण  रा  काम सरावाँ किण  नै  बोलाँ बावला ।

चोफेर है हवा धुवादी जहर घुल्यो जिनगाणी में ,
गजब गन्दगी घुल्बा लागी इमरत जैडा पानी में  ,
 सुख रो सागर सूखो निकल्यो सपना बिक्या उधारी में ,
खुशबू री आसा में उगी बदबू केसर क्यारी में ,
मानसरोवर पूक्या बगला तन उजला मन साँवला ,
बोलो किण  रा  काम सरावाँ किण  नै  बोलाँ बावला ।
बगुला री एकत है ठाडी हंस गिणत में थोड़ा है ,
मानसरोवर गुदलो होगो या हंसा में फोड़ा है ,
झीलां में जलकुम्भी पसरी जल में कमल खिले कोनी ,
चुगबा खातर  याँ हँसा ने मोती आज मिले कोनी,
बगुला रे घर माँडा माही रहवे हंस कन्यावाला ,
बोलो किण  रा  काम सरावाँ किण  नै  बोलाँ बावला ।

डोर धनुष री टूटी टूटी तीर पड्या सब तरकश में ,
पडी गुफायाँ सगली सूनी शेर घुस्या सब सरकस में ,
 पिंजरा में वनराज पीठ पे चाबूका नित झेले है ,
जंगला माँही चोडै दहाड़े स्यार कबड्डी खेले है ,
भूखा तिसाया हिरन फिरे अर गोठ करे है कावला,
बोलो किण  रा  काम सरावाँ किण  नै  बोलाँ बावला ।

शिव मृदुल