Saturday, April 2, 2011

एक छोरी काळती - भागीरथ सिंह भाग्य

एक छोरी काळती हमेशा जीव बाळती,
सींवा जोड़ खेत म्हारो चाव सूँ रूखाळती |(एक छोरी...

ऊंचा ऊंचा टीबडा मै रूंखड़ा रो खेत हो ,
खेत रुजगार म्हारो खेत सूँ ही हेत हो |
हेत हरियाल्या नै तावडा सूँ टाळती || (एक छोरी ...

बेल बीरो शीश फूल फूल बीरी राखड़ी,
एक बार आखडी तो बार बार आखडी |
लाज सूँ झुकी झुकी सी लूगड़ी संभाळती|| (एक छोरी ...

भोत राजी रेवती तो झूपडी बुहारती ,
रूसती तो गाव्ड्या नै बाछड़ा नै मारती |
हेत जै जणावती तो टींडसी उछाळती || (एक छोरी ...

गाँव रै गुवाड़ बीच देखती ना बोलती ,
हेत सूँ बुलावता तो आँख भी ना खोलती |
खेत मै ना जावता तो गाळीयाँ निकालती ||(एक छोरी ....
                                                                    - भागीरथ सिंह भाग्य 

2 comments:

  1. वाह अंकित जी, इस कविता की रग रग में मिठास है। 🙏🙏

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  2. बहुत ही अच्छी कविता है

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