Monday, March 21, 2011

मत दीजे परदेस - भागीरथ सिंह भाग्य

लोग न जाणै कायदा ना जाणै अपणेस । राम भलाईँ मौत दे मत दीजै परदेस  ||
ना सुख चाहु सुरग रो नरक आवसी दाय। म्हारी माटी गांव री गळियाँ जै रळ जाय॥
जोगी आयो गांव सूँ ल्यायो ओ समचार । काळ पड्यो नी धुक सक्यो दिवलाँ रो त्युहार् ॥
इकतारो अर गीतडा जोगी री जागीर । घिरता फिरतापावणा घर घर थारो सीर ॥
आ जोगी बंतल कराँ पूछा मन री बात । उगता हुसी गांव मँ अब भी दिन अर रात ॥
जमती हुसी मैफलाँ मद छकिया भोपाळ । देता हुसी आपजी अब पी कै गाळ ॥
दारू पीवै आपजी टूट्यो पड्यो गिलास । पी कै बोलै फारसी पड्या न एक किलास ॥
साँझ ढल्याँ नित गाँव री भर ज्याती चौपाळ । चिलमा धूँवा चालती बाताँ आळ पताळ ॥
पाती लेज्या डाकिया जा मरवण रै देश । प्रीत बिना जिणो किसो कैजे ओ सन्देश ॥
काळी कोसा आंतरै परदेशी री प्रीत । पूग सकै तो पूग तूँ नेह बिजोगी गीत ॥
मरवण गावै पीपली तेजो गावै लोग । मै बैठयो परदेश मँ भोगू रोग बिजोग ।।
सावण आयो सायनी खेता नाचै मोर । म्हारै नैणा रात दिन गळ गळ जावै मोर ॥
                                                                                          - भागीरथ सिंह भाग्य 

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